भारतीय ‘नॉकआउट क्वीन’ आशा रोका से जुड़ी 5 रोचक बातें
शुक्रवार, 20 मई को आशा “नॉकआउट क्वीन” रोका अपने नाम को सही साबित करने की योजना बना रही हैं।
उस शाम को भारतीय स्ट्राइकर का मुकाबला सिंगापुर इंडोर स्टेडियम से प्रसारित होने वाले ONE 157: Petchmorakot vs. Vienot के एटमवेट मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स मुकाबले में अमेरिकी सनसनी अलीस “लिल सैवेज” एंडरसन से होगा।
रोका के नाम अपने प्रोफेशनल करियर में चार जीत हैं, जिसमें हरेक मुकाबला शुरुआती राउंड में 2 मिनट से भी कम समय में समाप्त हुआ है। इस वजह से ऐसा कहा जा सकता है कि भोपाल की रहने वाली एथलीट अपनी अगली फाइट को भी इसी अंदाज में जीतने का प्रयास करेंगी।
एंडरसन से उनके मुकाबले से पहले आइए “नॉकआउट क्वीन” के बारे में 5 रोचक बातें जानते हैं।
#1 एक बेहतरीन बॉक्सर
आशा रोका का कॉम्बैट स्पोर्ट्स में सफर बॉक्सिंग के जरिए शुरू हुआ था। उन्होंने “द स्वीट साइंस” को तब सीखना शुरू किया था, जब वो 11 साल की थीं। इसके कुछ ही समय बाद उन्होंने अपनी स्किल्स को मुकाबले में परखना शुरू किया और एमेच्योर लेवल पर वो माहिर होती चली गईं।
साल 2010, 2011 और 2012 में “नॉकआउट क्वीन” ने सब जूनियर नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल, साल 2012 में जूनियर बॉक्सिंग वर्ल्ड चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल, 2013 में सेकंड नेशनल कप इंटरनेशनल सब जूनियर बॉक्सिंग टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल और 2013 में ही AIBA विमेंस यूथ एंड जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में एक ब्रॉन्ज मेडल भी जीता है।
इसके बाद भारत में एमेच्योर बॉक्सिंग पर तीन साल के लिए प्रतिबंधित लग गया था, लेकिन इसके बावजूद जब प्रो बनने का मौका आया तो रोका ने उस मौके का पूरी तरह से भुनाया।
उन्होंने कहा:
“मेरे पास एक ऑफर आया, जिस पर मैं दोबारा विचार किए बिना तैयार हो गई थी। मेरा प्रोफेशनल बॉक्सिंग रिकॉर्ड चार जीत और एक ड्रॉ है।”
#2 उनकी स्पोर्ट्स हीरो हैं मैरी कॉम
एक बॉक्सर के रूप में आशा रोका ने अपनी महान हमवतन खिलाड़ी मैरी कॉम को देखकर प्रेरणा ली है।
मैरी कॉम 6 बार की AIBA विमेंस वर्ल्ड चैंपियन और साल 2012 में इंग्लैंड के लंदन में आयोजित हुए समर ओलंपिक गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल हासिल कर चुकी हैं।
ऐसे में रोका को जब अपनी स्पोर्ट्स हीरो से मिलने का मौका मिला तो उन्होंने उन लम्हों को किसी खजाने की तरह संजो लिया था।
“मैरी कॉम मेरी प्रेरणा हैं। वो 6 बार वर्ल्ड चैंपियन रह चुकी हैं और उन्होंने ओलंपिक्स में एक मेडल भी जीता है। ये बहुत बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने मुझे बहुत प्रेरित किया है। एक अवॉर्ड समारोह में मुझे उनके हाथों से एक पुरस्कार भी मिल चुका है।”
आशा रोका ने onefc.com को बताया
#3 उनका MMA डेब्यू मात्र 9 सेकंड तक चला था
आशा रोका ने अपना प्रोफेशनल MMA डेब्यू जनवरी 2017 में किया था, लेकिन उस दौरान उनकी वॉक ने मुकाबले से ज्यादा समय लिया था।
उस मुकाबले में भारतीय एथलीट का सामना दिग्गज एंजेला पिंक के साथ नई दिल्ली में हुआ था। जैसे ही मुकाबला शुरू होने के लिए घंटी बजी, उन्होंने अपने विरोधी पर लेफ्ट हुक से जोरदार प्रहार किया और उन पर चढ़ गईं। फिर राइट हैंड से धावा बोल दिया, जिसके बाद तत्काल रेफरी को हाथ हिलाकर मुकाबला उनके हक में देना पड़ा था।
इस तरह “नॉकआउट क्वीन” ने महज 9 सेकंड में तकनीकी नॉकआउट से जीत दर्ज की और ये उनके करियर की सबसे यादगार फाइट बन गई।
उन्होंने कहा:
“वो मेरी प्रोफेशनल करियर की पहली फाइट थी। उस समय आप जोश से भरे होते हैं और हर कीमत पर जीत हासिल करना चाहते हैं। मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि ये खेल इतना टेक्निकल होगा।”
#4 ONE के भारतीय दिग्गज एथलीट्स के साथ ट्रेनिंग करती हैं
लोहा लोहे को धार देता है। ऐसे में आशा रोका ONE Championship में कुछ दूसरे दिग्गजों के साथ ट्रेनिंग करती हैं, जो एक-दूसरे की स्किल सेट को एक नए स्तर पर ले जाने में मदद करते हैं।
23 साल की एथलीट अक्सर साथी भारतीय एटमवेट पूजा “द साइक्लोन” तोमर और स्ट्रॉवेट हिमांशु कौशिक के साथ अपने गेम को धार देती रहती हैं।
रोका उन्हें बॉक्सिंग के गुर सिखाती हैं और वो उनकी किकिंग व ग्रैपलिंग में मदद करते हैं।
“जब भी समय मिलता है तो हम साथ में ट्रेनिंग करते हैं। मेरे पंच बहुत अच्छे हैं तो मैं उन्हें अच्छे पंच कैसे मारे जा सकते हैं, इस बारे में बताती हूं। उनकी किक्स और टेकडाउंस बेहतर हैं तो वो मुझे उसकी तकनीक के बारे में बताते हैं। वो अपने अनुभव भी मेरे साथ साझा करते हैं।”
आशा रोका ने onefc.com को बताया
#5 पहाड़ों पर आता है मजा
आशा रोका जब जिम में अपनी फाइट के लिए ट्रेनिंग नहीं कर रही होती हैं तो वो खुद को रिलैक्स करने के लिए बाहर निकल जाती हैं। आसान शब्दों में कहा जाए तो भारतीय एथलीट को नई जगहों को एक्सप्लोर करना और प्रकृति के करीब जाना अच्छा लगता है।
20 मई को अलीस एंडरसन के खिलाफ होने वाले अपने मुकाबले से पहले “नॉकआउट क्वीन” ने कहा:
“मुझे ट्रैकिंग और कैम्पिंग करना बहुत अच्छा लगता है। ऐसे में अगर मुझे समुद्र के किनारे और पहाड़ों पर जाने के बीच फैसला करना पड़े तो मैं दूसरे वाले विकल्प को चुनूंगी।”