ज़िद, जुनून और जज्बे से भरी है भारतीय नॉकआउट आर्टिस्ट आशा रोका की कहानी
भारतीय बॉक्सिंग चैंपियन आशा “नॉकआउट क्वीन” रोका ONE में अपनी पहली जीत की तलाश के इरादे से उतरेंगी।
शुक्रवार, 31 जनवरी को फिलीपींस की राजधानी मनीला के मॉल ऑफ एशिया एरीना में होने वाले ONE: FIRE & FURY में आशा का सामना जीना “कंविक्शन” इनियोंग के साथ होगा। जीना करीब 1 साल बाद किसी मुकाबले में उतरने जा रही हैं, वहीं “नॉकआउट क्वीन” को पिछले साल अगस्त महीने में हुए ONE: DREAMS OF GOLD में स्टैम्प फेयरटेक्स के हाथों सबमिशन के जरिए हार का सामना करना पड़ा था।
अगले हफ्ते होने वाले मुकाबले से पहले भारतीय स्टार ने बॉक्सिंग की शुरुआत, करियर में आई चुनौतियों, परिवार के सपोर्ट और मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स में आने के सफर के बारे में विस्तार से बात की।
खेलकूद भरा बचपन
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आशा रोका मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की रहने वाली हैं। उनके अलावा परिवार में माता-पिता और बड़े भाई-बहन हैं।
आशा के पिता एक सरकारी अस्पताल में नौकरी करते हैं और मां हाउस वाइफ हैं। उनके पिता की हमेशा से ही खेलों में रूचि रही है और उन्होंने अपने बच्चों को खेलों में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित किया।
उन्होंने कहा, “मुझे परिवार का पूरा साथ मिला क्योंकि मेरे पिताजी को खेलों से बहुत प्यार है।”
21 साल की भारतीय सुपरस्टार के बड़े भाई और बहन दोनों बॉक्सर हैं।
आगे बताते हुए उन्होंने कहा, “मेरे भाई आर्मी में हैं, जो बॉक्सिंग में आर्मी का प्रतिनिधित्व करते हैं। बड़ी बहन प्रोफेशनल बॉक्सर होने के साथ-साथ ट्रेनर भी हैं।”
बॉक्सिंग करियर की शुरुआत
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11 साल की उम्र से “नॉकआउट क्वीन” के बॉक्सिंग करियर की शुरुआत हुई। बड़े भाई के कोच ने उनमें प्रतिभा को देखकर बॉक्सिंग में आने के लिए उत्साहित किया।
उन्होंने कहा, “एक दिन बॉक्सिंग ट्रेनिंग के लिए जा रहे भाई के साथ ऐसे ही घूमने चली गई। वहां कोच ने मुझे भी ट्रेनिंग में लगा दिया। जो भी चीज़ें कोच ने मुझे बताईं, मैने सब कर दिया, तो उन्होंने मुझे बॉक्सिंग जॉइन करने के लिए कहा।”
पहली बार स्टेडियम में इतना बड़ा ट्रैक और काफी सारी लड़के-लड़कियों को कम्पीट करते देख उन्हें काफी अच्छा लगा, मगर वो पहले दिन के बाद लंबे समय तक ट्रेनिंग के लिए नहीं गईं।
“मैं काफी दिनों तक ट्रेनिंग के लिए नहीं गई। कोच ने एक दिन मेरे भाई से मेरे बारे में पूछा, उसके कुछ समय बाद में रेगुलर ट्रेनिंग में जुट गई।”
उनके भाई-बहन भी बॉक्सिंग से ही जुड़े हुए हैं। ऐसे में उन्होंने भाई-बहन से मिलने वाले सपोर्ट के बारे में कहा, “दोनों ट्रेनिंग में काफी मदद करते थे। हम एक दूसरे के ट्रेनिंग पार्टनर भी बन जाते थे।”
बॉक्सिंग में मिली शानदार कामयाबी
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आशा को अपने करियर की शुरुआत में ढेर सारी सफलता हासिल की। 11 की उम्र में कोच ने उनमें जो टैलेंट देखा था कि उस पर खरी उतर रही थीं।
ट्रायल्स में बाकी लड़कियों को पछाड़कर आशा ने खुद को काफी मजबूत बना लिया था। धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग भी लाने लगी। उन्होंने 2013 में बुल्गेरिया में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज़ मेडल अपने नाम किया।
इस बारे में उन्होंने बताया, “मुझे अपने पहले ही इंटरनेशनल कॉम्पिटिशन में मेडल मिला और उसके बाद वर्ल्ड चैंपियनशिप का मेडल जीतना मेरे लिए सबसे बड़ी बात थी।”
“ये हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण था। मैं भारत के लिए मेडल जीतने वाली अकेली एथलीट थी। वो मेरे लिए बहुत खुशी का पल था।”
इसके अलावा भी भोपाल में जन्मीं स्टार ने नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर कई सारे मेडल अपने नाम किए।
करियर और जिंदगी बदलने वाला फैसला
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आशा के बॉक्सिंग करियर में मिल रही सफलताओं पर मानो ग्रहण लग गया। दिसंबर 2012 में भारतीय बॉक्सिंग फेडरेशन पर बैन लगा दिया गया और यहीं से उनकी बॉक्सिंग के प्रति दिलचस्पी भी कम होने लगी थी।
वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेडल जीतने वालीं इस एथलीट ने बताया, “3 साल तक बॉक्सिंग पर बैन लग गया था।”
“लगातार कैम्पों का आयोजन हो रहा था, लेकिन हमें टूर करने का मौका नहीं मिल पा रहा था। मैं इस वजह से निराश होती थी और बॉक्सिंग के प्रति मेरी दिलचस्पी कम हो गई।”
टीवी पर मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स मुकाबले को देखकर उनकी इस खेल के प्रति दिलचस्पी पैदा हुई और फिर आशा ने भारत में इस खेल के मौकों को तलाशना शुरु कर दिया।
आशा ने बताया, “टीवी पर मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स फाइट देख रही थी और मेरी इसमें रूचि पैदा होने लगी।”
“मुझे पता नहीं था कि भारत में ऐसी फाइट होती हैं या नहीं, लेकिन फिर मैंने इंटरनेट पर देखा। एक साल तक मैंने काफी स्ट्रगल किया, मुझे कोई फाइट लड़ने का मौका नहीं मिला। फिर एक बार ट्रायल में पास होने पर मुझे फाइट मिली।”
भारत में हुई एक मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स लीग में आशा ने जबरदस्त प्रदर्शन कर सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। उन्होंने अपने चारों मुकाबले 2 मिनट के भीतर ही जीते।
हालांकि, बॉक्सिंग छोड़कर मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स में आने का फैसला उनके परिवार को सही नहीं लगा लेकिन उन्होंने फिर भी हिम्मत नहीं हारी।
आशा ने बताया, “मम्मी-पापा का सपोर्ट बॉक्सिंग के लिए बहुत अच्छा था, लेकिन MMA के लिए नहीं। बॉक्सिंग छोड़कर प्रोफेशनल करियर में आई तो उन्होंने काफी मना किया क्योंकि मैं एमेच्योर बॉक्सिंग में अच्छा प्रदर्शन कर रही थी। इसके अलावा भाई-बहन ने भी एमेच्योर बॉक्सिंग की ही सलाह दी।”
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मनीला | 31 जनवरी | ONE: FIRE & FURY | टिकेट्स: यहां क्लिक करें
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