अहंकार के कारण किकबॉक्सिंग में आए आरियन सादिकोविच को अनुशासन ने महान बना दिया
अगर आप ये जानना चाहते हैं कि मुश्किल में पड़े किशोर का जीवन मार्शल आर्ट्स की शक्ति से कैसे सुधर गया तो ये बात आप आरियन सादिकोविच से पूछ सकते हैं।
27 साल के जर्मन एथलीट ने कॉम्बैट स्पोर्ट्स से एक नई शुरुआत की थी और अब उनकी ये यात्रा शुक्रवार, 22 अप्रैल को ONE 156 के मेन इवेंट में ONE लाइटवेट किकबॉक्सिंग वर्ल्ड चैंपियन रेगिअन इरसल को चुनौती देने तक आ पहुंची है।
सादिकोविच के लिए ये कभी भी आसान नहीं था, लेकिन अपने नए पैशन के चलते उन्होंने अंतत: कामयाबी हासिल कर ली।
ऐसे में आइए जानते हैं कि “गेम ओवर” के उपनाम से पहचाने जाने वाले स्ट्राइकर ने कठिनाई भरी शुरुआत से सिंगापुर इंडोर स्टेडियम में वर्ल्ड टाइटल मुकाबले तक का सफर कैसे तय कर लिया।
बचपन शरणार्थी जैसा गुजरा
सादिकोविच के माता-पिता बोस्निया के रहने वाले थे, जो युगोस्लाव युद्ध के चलते 1990 की शुरुआत में सुरक्षित ठिकाने की तलाश में जर्मनी भाग आए थे।
“गेम ओवर” का जन्म और पालन-पोषण हैनोवर में तीन भाइयों में बीच की संतान के तौर पर हुआ था। वो काफी छोटे थे इसलिए उन्हें अपने परिवार की मुश्किलों के बारे में ज्यादा याद तो नहीं है, लेकिन वो ये बात अच्छी तरह से समझते हैं कि उनके माता-पिता को स्थिरता पाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था।
सादिकोविच ने कहा:
“मेरे माता-पिता के लिए जर्मनी में शुरुआती कुछ साल बहुत कठिन रहे थे। उनको शरणार्थी घरों में रहना पड़ा (मेरे और मेरे भाइयों के साथ) था। उन्हें जर्मन भाषा नहीं आती थी। जर्मनी में उनके पास कुछ भी नहीं था। इन सभी चीजों के चलते उनकी शुरुआत बहुत कठिनाइयों के साथ हुई थी।”
इन सबके बावजूद जर्मनी में बसना उनके भाइयों के काम आ गया, जिनका बचपन बोस्निया के खतरों से दूर कुछ आराम के साथ बीता।
जिस देश को उन्होंने शरण लेने के लिए चुना था, वो शरणार्थियों के लिहाज से अच्छा था और सादिकोविच को वहां कई खेल आयोजनों में हिस्सा लेने का मौका मिला, जिसमें फुटबॉल प्रमुख था।
उन्होंने याद करते हुए बताया:
“जर्मनी बहुत अच्छा है, कई संस्कृतियों वाला देश है। साथ ही वहां की सबसे अच्छी बात ये थी कि हम बचपन में वहां खूब सारे खेल खेला करते थे, जिसके चलते हमें गलियों में नहीं भटकना पड़ा। मैंने 10 साल तक फुटबॉल खेला और मैं एक फुटबॉल स्टार ही बनना चाहता था।”
गलियों से पहुंचे जिम तक
जब सादिकोविच किशोरावस्था में पहुंचे तो उनके जीवन में बदलाव शुरू हो गए। हालांकि, उनके साथ कुछ गंभीर तो नहीं हुआ था, लेकिन कुछ गलत फैसलों के चलते उनके आसपास के लोगों का ध्यान उन पर जरूर चला गया।
यहां तक कि जर्मन एथलीट को गलत रास्ते पर जाने से रोकने के लिए उनके परिवार और नए खेल को बीच में आना पड़ा।
“गेम ओवर” ने अपने पिता के साथ कुछ किकबॉक्सिंग बाउट्स देखी थीं, जिनमें उन्हें मजा आने लगा, लेकिन ये उनके बड़े भाई का कमाल था, जिन्होंने उन्हें मार्शल आर्ट्स में हाथ आजमाने के लिए जोर दिया था।
उन्होंने कहा:
“एक समय पर मेरे बड़े भाई ने मुझसे कहा था कि ‘तुम घर के बाहर बहुत परेशानियां खड़ी कर रहे हो। तुम्हें अपना बचाव करना आना चाहिए तो मेरे साथ तुम किकबॉक्सिंग जिम चला करो।’
“उस समय वो टायक्वोंडो सीखा करता था और उन्होंने मुझसे कहा कि अगर आपको बॉक्सिंग और किकबॉक्सिंग पसंद है तो मेरे साथ जिम चला करो। ऐसे में मैं जब 13 या 14 साल का था, तब ये शुरू किया था।”
सादिकोविच ने अपने सत्रों को जारी रखा और बाकियों की तुलना में उन्हें ट्रेनिंग में तेज़ी और दिलचस्पी के चलते किकबॉक्सिंग के प्रति में उनका शुरुआती झुकाव बढ़ने लगा।
मगर सच तो ये था कि बदले की भावना के चलते युवा एथलीट इस खेल को पसंद कर रहे थे।
उन्होंने बताया:
“अगर मैं आपसे सच कहूं तो जब मैं जिम गया तो वहां कुछ लोगों ने मुझे पंच मारा और उसके चलते मुझमें अहंकार भर गया।
“मैं एक छोटा मोटा लड़का था। वो लोग मुझसे उम्र और शरीर में बड़े थे। मुझे बहुत गुस्सा आया था। मैं उन्हें वापस पंच मारने के तरीके तलाश रहा था और उनसे बेहतर बनना चाहता था इसलिए मैं जिम जाता रहा।”
‘किकबॉक्सिंग ने मेरा जीवन बदल दिया’
जिन भावनाओं के चलते सादिकोविच ने अपनी प्रैक्टिस जारी रखी, उन्हीं भावनाओं ने उन्हें जल्द ही सफलता के नए रास्ते पर ला दिया।
एक बार जब उन्होंने अपने गुस्से और अहंकार को किकबॉक्सिंग में उतारना सीख लिया तो कोच ने युवा हैनोवर निवासी में उभरती हुई प्रतिभा को देख लिया। इसके कुछ ही समय बाद स्ट्राइकर का प्रतियोगी करियर शुरू हो गया।
उन्होंने याद करते हुए कहा:
“जिम में मैं काफी आक्रामक बच्चा हुआ करता था, जो काफी ट्रेनिंग करता था। ऐसे में कुछ महीने बाद मेरे कोच ने मुझे एमेच्योर मुकाबले में उतार दिया।”
किकबॉक्सिंग में खुद को समर्पित कर चुके Fightschool Hannover और Team CSK के प्रतिनिधि ने प्रोफेशनल बनने से पहले एमेच्योर किकबॉक्सिंग में 21-5 का रिकॉर्ड बना डाला था।
इसके बाद उन्होंने खचाखच भरे यूरोपियन सर्किट में खुद को टॉप कंटेंडर साबित कर दिया और फिर अपना पूरा ध्यान वर्ल्ड स्टेज पर लगा दिया।
सादिकोविच के इन अनुभवों ने लगातार रिंग में उनकी स्किल्स को सुधारा और रिंग के बाहर उन्हें बेहतर जीवन जीने के काबिल बनाया।
उन्होंने बताया:
“किकबॉक्सिंग ने मेरा जीवन बदल दिया। इसने मुझे पहले से कहीं ज्यादा अनुशासित कर दिया। साथ ही मेरे गुस्से और नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर दिया। इसमें ट्रेनिंग और फाइटिंग करने के बाद मैं विनम्र हो गया। अब अगर मैं रिलैक्स्ड हूं तो इस ट्रेनिंग की वजह से ही हूं। इसके साथ ही मुझे कड़ा परिश्रम भी करना आ गया।”
ONE Championship में खिताब तक पहुंचना
10 नॉकआउट के साथ अपने शानदार 21-3 के रिकॉर्ड के चलते सादिकोविच को ONE Championship में मुकाबला करने का कॉन्ट्रेक्ट मिल गया।
इसके बाद जर्मन एथलीट से काफी उम्मीदें बढ़ गई थीं और दिसंबर में पूर्व वर्ल्ड टाइटल चैलेंजर मुस्तफा हैडा पर एक बड़ी डेब्यू जीत के साथ वो सभी की उम्मीदों पर खरे उतर गए।
इस शानदार प्रदर्शन के चलते “गेम ओवर” को दबदबे वाले डिविजन में किंग रेगिअन इरसल के खिलाफ मुकाबला करने को मौका मिल गया, जो कि इस उभरते सितारे के करियर का सबसे बड़ा मौका साबित हो सकता है।
उन्होंने कहा:
“वर्ल्ड टाइटल का मौका मिलना मेरे करियर का सबसे खास पल है। इस खेल में ये मेरे जीवन का सबसे खूबसूरत लम्हा है।
“मैंने कई सारे संगठनों में बहुत से तगड़े फाइटर्स के साथ मुकाबला किया है, लेकिन इरसल सबसे तगड़े विरोधी हैं, लेकिन मेरा मानना है कि किसी को भी हराया जा सकता है।”
सादिकोविच के पास दुनिया के सबसे बड़े मार्शल आर्ट्स संगठन के लिए काफी बड़ी योजनाएं हैं और वो सभी शुक्रवार को “द इम्मोर्टल” के खिलाफ होने वाले मुकाबले से शुरू होती हैं।
इरसल का 18 लगातार मुकाबले जीतने का सिलसिला तोड़ना आसान नहीं होगा, लेकिन वर्ल्ड टाइटल चैलेंजर पहले ही दूसरे एथलीट्स से ऊंचे उठ चुके हैं और उन्हें विश्वास है कि वो शिखर तक जा सकते हैं।
वो हर हाल में गोल्डन बेल्ट पर कब्जा जमाना चाहते हैं और उनका मानना है कि इससे उनके हमवतन जर्मन एथलीट्स व पैतृक मातृभूमि में रहने वालों को भी प्रेरणा मिलेगी।
“गेम ओवर” ने बताया:
“मैं ONE Championship में लाइटवेट वर्ल्ड चैपियन बनना चाहता हूं और यही मेरा सबसे बड़ा लक्ष्य है।
“जब मैं बेल्ट जीत जाऊंगा तो सबसे पहले जर्मनी जाना चाहूंगा और उसके बाद मैं बोस्निया भी जाना चाहता हूं। ये वो जगह हैं, जहां मेरा परिवार रहा करता था। वहां मेरे परिवार के काफी सारे लोग रहते हैं और मुझे सबसे ज्यादा समर्थन बोस्निया और सैंडजक से मिलता है तो मैं उन्हें ये दिखाना चाहता हूं।”