जियोर्जियो पेट्रोसियन अपने अतीत को कभी नहीं भूल सकते हैं
इटली की सड़कों पर बेघर जिंदगी गुजाने की दुश्वारियों से उबरकर जियोर्जियो “द डॉक्टर” पेट्रोसियन अब दुनिया के सबसे महान किकबॉक्सर बन गए हैं।
ONE फेदरवेट किकबॉक्सिंग वर्ल्ड ग्रां प्री चैंपियन अरमेनिया में अपने घर से बचपने में ही दूर हो गए थे। उन्होंने नए देश में पैर जमाने के लिए काफी संघर्ष किया था। फिर जब मार्शल आर्ट्स ने उनकी जिंदगी को मायने दिए तो उन्होंने ये सुनिश्चित किया कि अब उनके परिवार में कोई भूखा नहीं रहेगा।
पुराने देश में गुजारा जीवन
पेट्रोसियन का जन्म 1985 में अरमेनिया की राजधानी येरेवेन में हुआ था। उनको याद है कि वहां उन्होंने अपना शुरुआती जीवन खुशहाली में माता-पिता और दो भाई व एक बहन के साथ गुजारा था।
बचपन से ही वो सिल्वर स्क्रीन पर मार्शल आर्ट्स के हीरोज को देखकर उनसे प्रभावित होते थे और उनके जैसा बनने का सपना देखा करते थे।
उन्होंने बताया, “मैं फाइट वाली फिल्में देखा करता था और फिर घर से बाहर जाकर खुद ही उनकी प्रैक्टिस करता था।”
“मैं खूब दौड़ता था और पंचिंग बैग को हिट करता था। ये सब मैं अपने आप ही करता था। मैं जो भी फिल्मों में देखता था, उसी को फॉलो करना शुरू कर देता था।”
हालांकि, जब अरमेनिया का अजरबेजान से विवाद हुआ और वहां उनका परिवार फंस गया, तो उन्हें काफी परेशानी भरे दिनों का सामना करना पड़ा था।
उन्होंने बताया, “हमारे घर में बिजली नहीं आती थी, खाना नहीं होता था। परिवार को एक ब्रेड और खाने की अन्य चीजों के लिए काफी लंबी लाइन में लगे रहना पड़ता था।”
“खुद को गर्म रखने के लिए मिलने वाले ईंधन के लिए काफी देर तक लाइन में लगे रहना होता था क्योंकि वहां बहुत ठंड होती थी। इस वजह से मेरे पिता ने अपने बच्चों की खातिर फैसला किया कि वो उस जगह को छोड़कर किसी अच्छी जगह चले जाएंगे। दरअसल, तब अरमेनिया में मेरा और मेरे परिवार का रहना काफी मुश्किल हो गया था।
“साल 1991 उन्होंने मुझे और मेरे भाई स्टीपेन को गोद में उठाया और हम लोग अरमेनिया से निकल गए। हम गलत तरीके से किसी देश में घुसने वालों की तरह ट्रक में चढ़े और निकल गए। वो बहुत लंबी और कठिन यात्रा थी।”
इटली में जमाए पैर
जब पेट्रोसियन परिवार ने अपना देश छोड़ा तो उन्हें नहीं पता था कि वे कहां जाने वाले हैं। वे बस ऐसी जगह जाना चाहते थे, जहां अच्छी जिंदगी जी जा सके। इसके बाद उनका सफर इटली के मिलान शहर में जाकर रुका।
जब वो वहां पहुंचे तो उनके पास न तो पैसा, न खाना और न ही रहने के लिए सिर के ऊपर छत जैसा कुछ भी था। उनको सिर छुपाने की जगह शहर के रेलवे स्टेशन में मिली। इससे जियार्जियो को भी राहत मिली थी क्योंकि वो उस वक्त बीमार थे।
उन्होंने बताया, “मुझे डर लग रहा था कि कुछ हो न जाए क्योंकि मेरे शरीर का तापमान 40 डिग्री तक पहुंच गया था और कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था।”
“मैं काफी भूखा और प्यासा था। मैं एक बेजान की तरह महसूस कर रहा था, जिसे भूख और प्यास लग ही नहीं रही थी।”
बेहतरी की उम्मीद में मेरा परिवार उत्तरी शहर टुरीन भी गया लेकिन वहां भी वही कहानी थी। अफसरों ने कोई मदद नहीं की। आखिर में वे अपना भाग्य आजमाने के लिए एक छोट शहर गोरीजिया में आ गए और वहां उन्हें जरूरी मदद मिली।
वहां उन्होंने अपने पैर जमाए और डेढ़ साल बाद मां और बहन को अरमेनिया से बुला लिया। उन्हें भी अवैध तरीके से ट्रक में अरमेनिया से निकलना पड़ा था और उतनी ही कठिन यात्रा से होकर गुजरना पड़ा था। हालांकि, जब वो लोग आ गए तो फिर हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा और बेहतर भविष्य की ओर आगे बढ़ गए।
महान बनने के लिए उठाया पहला कदम
इटली में बसने के दौरान बिताए गए कठिन समय में भी “द डॉक्टर” का मार्शल आर्ट्स के प्रति जुनून कम नहीं हुआ। वहां उनके पास उसे सीखने के लिए किसी तरह की कोई ट्रेनिंग उपलब्ध नहीं थी लेकिन उनके पिता उन्हें प्रोत्साहित करते रहे।
उनको याद है, “जब हम करीटास के शेल्टर में रुके थे, तब मैं खुद ही अकेले ट्रेनिंग करता था। वहां एक खाली जगह पर मैं पंच और किक मारा करता था।”
“मैं सिर्फ मैच की नकल करने की कोशिश करता था क्योंकि मुझे कुछ नहीं आता था। मेरे पिता मुझसे कहते थे कि चिंता मत करो, मैं तुम्हारे लिए इस छोटी सी जगह में कोई जिम खोज लूंगा और फिर ठीक वैसा ही हुआ।”
उनके एक फैमिली फ्रेंड ने कहीं से फॉर्मल ट्रेनिंग और एक कोच का इंतजाम कर दिया, जिन्हें ये लगा कि पेट्रोसियन रिंग के लिए ही बने हैं। उन्हें 16 साल की उम्र में पहला मैच खेलने का मौका मिला। उसमें उनका मुकाबला एक 22 साल के विरोधी से था। उस मैच में उनके पैर का अंगूठा भले ही टूट गया था लेकिन इसने उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
उन्होंने बताया, “वो मैच मैं जीत गया था। भले ही उस दौरान मेरे पैर का अंगूठा टूट गया था लेकिन उस जीत ने मुझे आगे बढ़ने के लिए हिम्मत दी।”
“इमरजेंसी रूम में मेरा उपचार किया गया जा रहा था और मैं अपनी फाइट का वीडियो देख रहा था। मैं हमेशा मैच खत्म करने के बाद उसका वीडियो देखता हूं, ताकि अपना होमवर्क अच्छे से कर सकूं।
“जब भी मैं अपनी बाउट के वीडियो देखता हूं, तब मुझे जरा भी खुशी नहीं होती है। मैं हमेशा देखता हूं कि कहां सुधार किया जा सकता है। इससे मुझे आगे बढ़ने की हिम्मत मिलती है। मैं जितनी बाउट जीतता जाऊंगा, उतना ही सुधार अपने मैच में लाना चाहूंगा।”
कदम आसमान पर
पेट्रोसियन ने करियर के शुरुआती कुछ साल में मॉय थाई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और कई सारी बेल्ट जीतीं। इस दौरान उन्हें बस नॉथनैन पोर प्रमुक से बैंकॉक में हार का सामना करना पड़ा था।
अपने शानदार प्रदर्शन और रिकॉर्ड के बावजूद “द डॉक्टर” को कभी ये नहीं लगा कि वो सच में वर्ल्ड क्लास एथलीट हैं। हालांकि, जब उन्होंने जापान में होने वाले विश्व के सबसे बड़े टूर्नामेंट 2009 के-1 वर्ल्ड मैक्स ग्रां प्री में एक ही रात में तीन बेहतरीन एथलीट को हराया, तब उन्हें इस बात का अहसास हुआ।
उन्होंने बताया, “जब मैंने अपना पहला के-1 मैक्स वर्ल्ड टाइटल जीता, तब उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या अब आप खुद को वर्ल्ड चैंपियन मानते हैं और उस समय मैंने पहली बार कहा कि हां मैं खुद को वर्ल्ड चैंपियन मानता हूं।”
“तब तक मैं 1000 बेल्ट जीतने पर भी खुद को कुछ खास नहीं समझता था।”
हालांकि, उनकी सफलता का सफर उसके बाद से जारी है। उन्होंने के-1 वर्ल्ड टाइटल फिर अगले साल जीता और उसके बाद कई साल तक जीतते रहे। बस उन्हें एक हार का ही सामना करना पड़ा था।
2018 में उन्होंने The Home Of Martial Arts के किकबॉक्सिंग और मॉय थाई डिविजन के लॉन्च पर वहां जाने का मौका मिला। इसके बाद उन्होंने अपने करियर का सबसे बड़ा ईनाम जीत के साथ हासिल किया। उन्होंने दुनिया के तीन सबसे अच्छे स्ट्राइकर्स को हराकर ONE फेदरवेट किकबॉक्सिंग ग्रां प्री जीत ली।
अब वो अपनी विरासत में 102-2-2 (2 NC) का शानदार रिकॉर्ड जोड़ने की सोच रहे हैं। भले ही वो मार्शल आर्ट्स की दुनिया में टॉप पर हैं लेकिन बचपन के कठिन दिनों से उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली थी। उन्होंने जो किया उससे, वो पूरी दुनिया में बसे अपने प्रशंसकों के लिए एक आदर्श बन गए हैं।
34 वर्षीय एथलीट ने कहा, “मैं आज जो भी हूं, वो अपनी जीतने की इच्छा और उसे पाने की भूख के कारण हूं। इसी ने मुझे परिपक्व इंसान बनाया है।”
“सबसे जरूरी बात है इंसानियत, जो हर किसी में देखने को नहीं मिलती। मैंने भले ही सब कुछ जीत लिया हो लेकिन मैं अब भी वो 16 साल का लड़का हूं, जिसने शुरुआत की है और इस बात पर मुझे गर्व है। इस वजह से मेरे लिए ये जरूरी है कि मैं न सिर्फ आगे की सोचूं बल्कि पीछे की चीजें भी याद रखूं कि मैं कहां से आया हूं और किस तरह से शुरुआत की थी। ऐसे में मैं चाहे जो भी पा लूं, पर मैं अपना अतीत नहीं भूल सकता हूं।”
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