कैसे ड्यूक डिडिएर ने ओलंपिक में निराशा के बाद MMA में ख्याति पाई – ‘इसने मुझमें एक आग जलाई’

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ऑस्ट्रेलियाई स्टार ड्यूक “द ड्यूक ऑफ कैनबरा” डिडिएर हमेशा से एक टॉप एथलीट बनना चाहते थे।

ONE Fight Night 21: Eersel vs. Nicolas के एक बड़े मुकाबले में 6 फुट 4 इंच के हेवीवेट फाइटर का सामना बेन “वनीला थंडर” टायनन से होगा, लेकिन मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स में उन्होंने काफी देर बाद कदम रखा था।

6 अप्रैल को लुम्पिनी बॉक्सिंग स्टेडियम में जब वो अपने कनाडाई प्रतिद्वंदी से भिड़ेंगे, तब डिडिएर के पास डिविजन के टॉप कंटेंडर्स के बीच अपना नाम दर्ज कराने का मौका होगा, लेकिन जीवन के कुछ फैसले उन्हें पूरी तरह से अलग रास्ते पर ले जा सकते थे।

थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में डिडिएर की वापसी से पहले जानिए कैसे “द ड्यूक ऑफ कैनबरा” ने अन्य सपनों का पीछा करने के बाद मार्शल आर्ट्स करियर के शिखर पर अपनी जगह बनाई।

युवावस्था में स्पोर्ट्स में दिलचस्पी

डिडिएर का जन्म 1989 में ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा में हुआ था, जहां उनका अधिकांश बचपन खेल की ओर केंद्रित था।

उनके पिता ज्योफ एक सम्मानित रग्बी यूनियन खिलाड़ी के थे, जो स्थानीय ACT Brumbies में एक दिग्गज थे और उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय टीम का प्रतिनिधित्व भी किया था।

अपनी परवरिश पर विचार करते हुए डिडिएर ने कहा:

“बड़े होते हुए मेरा जीवन बहुत अच्छा रहा, मैं खेल बैकग्राउंड से आया था। मेरे पिता एक बड़े रग्बी खिलाड़ी थे इसलिए मैंने खेलों में यही करना शुरू किया। जब मैं नौ साल का था तब मैंने रग्बी खेलना शुरू किया।

“मेरे पिता Wallabies और Brumbies के लिए खेलते थे। वो एक प्रोफेशनल थे और बहुत प्रसिद्ध थे, खासकर यहां कैनबरा में।”

अपने पिता के अटूट समर्थन और रग्बी में एथलेटिक कौशल से प्रेरित होकर डिडिएर ने उनके रास्ते पर चलने का निर्णय लिया।

उन्होंने बताया:

“मेरे पिता का मुझ पर हमेशा बड़ा प्रभाव रहा है। उन्होंने कभी भी मुझे किसी विशेष खेल को अपनाने को नहीं कहा। वो हमेशा से मेरे लिए एक महान प्रेरक रहे हैं और मैंने जो कुछ भी चुना है, उसमें उन्होंने बहुत सहयोग किया है।

“मुझे लगता है कि उन्होंने मुझे बहुत प्रेरित किया, जिससे मैं (सफलता) हासिल कर सका क्योंकि ये कुछ ऐसा था जिसे मैंने देखा था कि ये संभव है और पहुंच के बाहर नहीं है।”

मार्शल आर्ट्स को अपनाना

डिडिएर ने नौ साल की उम्र में जूडो की ट्रेनिंग शुरू की, जिससे वो रग्बी में बेहतर टैकल कर सकें, लेकिन मार्शल आर्ट्स में दिलचस्पी ने आखिरकार उन्हें अपना बना लिया।

“द ड्यूक ऑफ कैनबरा” ने याद किया:

“मैंने जूडो करना इसलिए शुरू किया क्योंकि मेरे स्कूल में मुझसे कहा गया था कि इससे मुझे रग्बी खेलने में मदद मिलेगी। मेरे स्कूल में एक जूडो कार्यक्रम था, जो कई ओलंपिक एथलीट्स के साथ देश के सबसे विशिष्ट जूडो कार्यक्रमों में से एक था। वहीं मैंने इसे पहली बार आजमाया।

“मैंने रग्बी को एक तरह से छोड़ दिया था और वर्षों तक जूडो से ही जुड़ा रहा। मैं बस उस चीज की ओर आकर्षित हुआ जिसमें मैं अच्छा था इसलिए यदि मैं रग्बी में बेहतर होता तो आप शायद मुझे रग्बी खेलते हुए देखते, लेकिन मैं जूडो में बेहतर था।

“मुझे लगता है कि 16 और 17 साल की उम्र के बीच ये बिल्कुल स्पष्ट था कि मैंने अपना रास्ता चुन लिया है और मुझे पता था कि मेरा नंबर एक खेल कौन सा है। 20 साल की उम्र तक मैंने वास्तव में फिर कभी कोई रग्बी नहीं खेला।”

जूडो में अपने लंबे करियर के दौरान डिडिएर ने कई राष्ट्रीय खिताब, एक ओशिनिया चैंपियनशिप और एशियाई और यूएस ओपन में मेडल जीते। हालांकि उनकी ओलंपिक आकांक्षाएं अधूरी रहीं, लेकिन जूडो से उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

34 वर्षीय एथलीट ने कहा:

“इतनी कम उम्र में मुझे जूडो में जो अवसर दिए गए, उन्होंने मेरे लिए कई दरवाजे खोल दिए। मुझे केवल 13 साल की उम्र में जूनियर ऑस्ट्रेलियाई टीम में जाने के लिए चुना गया था और मुझे इतनी कम उम्र में जापान में प्रतिस्पर्धा करने का मौका मिला।

“और तब से अधिक से अधिक अंतरराष्ट्रीय यात्राएं होने लगीं। मेरा पासपोर्ट पूरी तरह से भरा हुआ है और मैं इसके लिए जूडो का आभारी हूं।

“मैंने कई बार दुनिया के कोने-कोने देखे हैं, जहां मैं जानता हूं कि मैं कभी वापस नहीं लौट पाऊंगा और मुझे लगता है कि ऐसा मेरे शुरुआती उत्साह और माता-पिता के समर्थन के कारण हुआ है।”

निराशा से उबरना और सफल होना

डिडिएर ने MMA और ब्राजीलियन जिउ-जित्सु (BJJ) में भी ट्रेनिंग शुरू की, लेकिन 2016 के ओलंपिक में ना जा पाने की निराशा के बाद उन्होंने फाइटिंग में खुद को झोंक दिया।

उन्होंने बताया:

“मैंने जूडो के लिए पूरी दुनिया घूमी। फिर उसके बाद मैंने निर्णय लिया कि मैं अपनी प्रतिभा को कहीं और ले जाना चाहता हूं। यही बात मुझे मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स की ओर ले गई।

“जूडो में मेरी आखिरी प्रतियोगिता 2016 में थी। मैंने ओलंपिक में क्वालीफाई करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। मैं शैडो स्क्वॉड में शामिल हो गया, मेरा विश्व में 23 या 24वां (रैंक) था, लेकिन ओलंपिक के लिए चुने जाने के लिए मुझे विश्व में 22वें स्थान पर होना आवश्यक था।

“पिछले 20 चक्रों में, चूंकि मैं ओशिनिया चैंपियन रहा था, ये मुझे ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने के लिए पर्याप्त होता। तो ये बेहद कठिन क्वालीफिकेशन मानदंड था और मैंने इसे लगभग हासिल कर लिया था। ये बेहद निराशाजनक था।”

इतने करीब आकर चूकना डिडिएर के लिए एक बड़ा झटका था, लेकिन पीछे मुड़कर देखने पर उनका मानना ​​है कि ये एक महत्वपूर्ण प्रेरणास्रोत है, जिसने उन्हें मार्शल आर्ट्स में सफलता के लिए प्रेरित किया।

उन्होंने आगे कहा:

“वो शायद सबसे बड़ा झटका था और इसके बाद मैं बहुत दुखी था। मैंने किसी चीज को पाने के लिए जी-जान लगा दी थी और मैं वास्तव में अंदर से टूटा हुआ महसूस कर रहा था।

“लेकिन 2017 तक मैं Brace FC के लिए AIC एरीना में मेन इवेंट में था और मैंने मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स में ऑस्ट्रेलियाई टाइटल जीता। मैंने ये सुनिश्चित किया कि मैं वापसी करूं और मैं हमेशा यही करता हूं।

“अंत में इसने मेरे अंदर एक ऐसी आग जला दी, जो शायद उतनी नहीं जलती अगर मैंने वो लक्ष्य हासिल कर लिया होता।”

MMA में टॉप पर नजर

अब प्रोफेशनल करियर में 8-2 के रिकॉर्ड के साथ वो कैनबरा में Progression MMA नामक एक जिम चला रहे हैं। ग्लोबल स्टेज पर प्रतिस्पर्धा करते हुए वो दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बनना चाहते हैं।

“द ड्यूक ऑफ कैनबरा” ने कहा:

“सच कहूं तो, ये काफी संतुष्टिदायक है और मुझे ऐसा लगता है कि ये मेरे जीवन में किए गए कड़ी मेहनत का नतीजा है जिसने मुझे इस मंच पर प्रतिस्पर्धा करने का मौका दिया है। और मुझे बहुत खुशी है कि मैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसा करने में सक्षम हुआ हूं और मुझे वैसी ख्याति मिली है जिसका मैं हकदार हूं।

“(ONE तक पहुंचना) एक लक्ष्य था जिसे मैंने बहुत पहले अपने लिए निर्धारित किया था और अब मेरा अगला लक्ष्य ये सुनिश्चित करना है कि मैं इस प्रमोशन में खुद को एक विजेता के रूप में स्थापित करूं।

“मुझे पता है कि मेरे पास इसे पूरा करने के लिए स्किल और क्षमता है। तो अब मुझे बस इतना ही करना है।”

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