इल्या फ्रेमानोव का रूस में कठिन परिस्थितियों से MMA वर्ल्ड टाइटल मैच तक का सफर – ‘मेरा जोखिम लेना सही साबित हुआ’
इल्या फ्रेमानोव को बचपन से ही ये पता था कि मार्शल आर्ट्स हमेशा उनके जीवन का एक अहम हिस्सा होगा।
कई युवा लड़कों की तरह रूसी एथलीट के पास बहुत अधिक ऊर्जा थी, जिसे उन्हें कॉम्बैट स्पोर्ट्स के जरिए रचनात्मक रूप से संचालित किया और अब कई सालों की मेहनत के बाद उन्हें अब ONE Fight Night 15 में ONE अंतरिम फेदरवेट MMA वर्ल्ड टाइटल मैच मिल रहा है।
उनका रास्ता कई उतार-चढ़ाव से भरा रहा है, लेकिन #3 रैंक के कंटेंडर इस शनिवार, 7 अक्टूबर को अपना सपना पूरा सकते हैं जब वो वर्ल्ड टाइटल बेल्ट के लिए थान ली का सामना करेंगे।
इससे पहले कि फ्रेमानोव थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक के लुम्पिनी बॉक्सिंग स्टेडियम में पूर्व डिविजनल किंग से भिड़ें, आइए जानें कि वो कैसे इतने मजबूत बने और उन्होंने टॉप पर अपनी जगह बनाई।
अथक मेहनत करने की शक्ति विरासत में मिली
फ्रेमानोव दक्षिणी रूस के क्रास्नोडार शहर के रहने वाले हैं। उनके जन्म से ठीक पहले उनका परिवार देश के सुदूर पूर्व में पेट्रोपावलोव्स्क-कामचात्स्की से वहां स्थानांतरित हो गया था।
उनके माता-पिता दोनों मेहनती और दृढ़ निश्चयी थे। उनकी मां घर चलाने के लिए कई नौकरियां करती थीं, जब तक वो स्थानीय सैन्य अड्डे पर लड़ाकू विमानों के नवीनीकरण की पर्यवेक्षक ना बन गईं और उनके पिता कारखाने के काम में धीरे-धीरे आगे बढ़े।
ये जगह परिपूर्ण नहीं थी, लेकिन 27 वर्षीय एथलीट को अपनी परवरिश पर नाज़ है:
“मेरे बचपन की कई यादें हैं, अच्छी और बुरी। हमारा परिवार अक्सर मछली पकड़ने साथ जाता था और प्रकृति में समय बिताता था। ये कुछ अच्छी बातें हैं जो मुझे याद आती हैं।
“विभिन्न कारणों से मेरा स्कूल और पड़ोस अच्छा नहीं माना जाता था। वहां कई बच्चे ऐसे थे, जो गरीब और परेशान परिवारों से आते थे और कुछ तो छोटी उम्र से ही नशे के आदी थे।
“लेकिन कुल मिलाकर, ये सामान्य था। मैं खेल, कोरल गायन और थिएटर में भाग लेता था और इन चीज़ों ने मुझे (जीवन में) अच्छाई दिखाई और भविष्य में सही रास्ते पर चलने में मदद की।”
जैसे-जैसे वो बड़े हुए, कई कठिन अनुभवों ने इन युवा एथलीट के व्यक्तित्व को आकार दिया। इसमें उनके माता-पिता का एक साथ कैंसर से लड़ना भी शामिल था, जब वो किशोरावस्था में थे।
दुख की बात है कि जब फ्रेमानोव किशोरावस्था में थे, तब उनके पिता ये लड़ाई हार गए थे, लेकिन युवा एथलीट ने ख़ुद को अपनी गतिविधियों में व्यस्त कर लिया और अपनी महत्वाकांक्षा के जोर पर आगे बढ़ते रहे।
उन्होंने याद किया:
“ऐसा हुआ कि मेरे माता-पिता दोनों को कैंसर हो गया। उन्होंने एक साथ कीमोथेरेपी ली और ठीक हो गए, लेकिन 2010 में मेरे पिता का कैंसर वापस आ गया और वो 53 की उम्र में चल बसे, मैं तब 14 साल का था।
“सामान्य तौर पर, मैं घर के बाहर ही रोमांच की तलाश में रहता था। मैं एक सक्रिय बच्चा था, जिसे खेलना पसंद था और मैंने कई विषयों में अपना हाथ आज़माया, जैसे कि कलाबाजी, तैराकी और फिर मार्शल आर्ट्स। मैंने हमेशा खुद को परखता था और खुद को कुछ साबित करने की कोशिश करता था। मैं हमेशा सर्वश्रेष्ठ बनने की इच्छा से प्रेरित था।”
मार्शल आर्ट्स और मिलिट्री स्कूल
फ्रेमानोव के लिए अपने शहर में गलत संगत में फंसना आसान होता, लेकिन ऐसा न होने में दो चीजों ने प्रमुख भूमिका निभाई।
मार्शल आर्ट्स और मिलिट्री स्कूल ने उन्हें सही रास्ते पर रखा। दूसरी चीज़ उनकी मां के कहने पर हुई क्योंकि वो जानती थीं कि अगर वो घर पर रहे तो कई जोखिम हो सकते हैं।
फ्रेमानोव ने बताया:
“मेरी मां ने सुझाव दिया कि मैं कैडेट कोर में भर्ती हो जाऊं और मैं तुरंत सहमत हो गया। उस समय कई लोगों ने कहा कि मैं एक कठिन बच्चा था और अगर मुझे खेल स्कूल या कैडेटों में नामांकित नहीं किया गया तो सड़कों पर रहकर बिगड़ जाऊंगा, हमारे समय के कई युवाओं की तरह।
“मैंने सोचा था कि कैडेटशिप मेरी व्यक्तिगत पसंद थी, लेकिन मेरी मां ने बाद में स्वीकार किया कि वो इसका सामना नहीं कर सकती थीं और ये हमारी समस्याओं का एकमात्र विकल्प और समाधान था।”
कैडेट कोर ने फ्रेमानोव को अनुशासन और दिनचर्या से अवगत कराया, साथ ही विभिन्न कॉम्बैट स्पोर्ट्स को आज़माने के अतिरिक्त मौके भी दिए।
उन्होंने पहले से ही टायक्वोंडो की स्ट्राइकिंग कला की ट्रेनिंग ली हुई थी, लेकिन जब उन्हें अपने सैन्य प्रशिक्षण में अन्य विषयों से परिचित कराया गया तो उन्होंने इसका आनंद लेना शुरू कर दिया।
इस सफर में फ्रेमानोव से मिले कोचों का भी उन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा और ये आज भी सच है जब वो ONE Championship में वर्ल्ड चैम्पियनशिप गोल्ड का पीछा कर रहे हैं:
“मैंने 7 साल की उम्र में मार्शल आर्ट का अभ्यास शुरू कर दिया था। इसका श्रेय मेरे पहले कोच, अलेक्जेंडर वेलेरिविच को जाता है। उन्होंने मुझमें क्षमता देखी और मैं उनका आभारी हूं। उन्होंने मुझमें खेल के प्रति प्रेम पैदा किया और मैं अब मार्शल आर्ट्स के बिना नहीं रह सकता।
“अतामान बाबिच के क्यूबन कोसैक कैडेट कोर में प्रवेश करने के बाद मैंने रेसलिंग और विभिन्न स्ट्राइकिंग तकनीकों जैसे नए विषयों का अभ्यास करना शुरू कर दिया।
“मैंने कई कॉम्बैट विषयों में प्रतिस्पर्धा करना शुरू किया जैसे हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट, आर्मी कॉम्बैट, यूनिवर्सल कॉम्बैट। एक साल बाद मैं अपने मुख्य कोच और दोस्त, ओलेग व्लादिमीरोविच पेरेवर्टुनोव से मिला। हमने तुरंत मॉय थाई, पैंक्रेशन, किकबॉक्सिंग, सवात और MMA में प्रतिस्पर्धा करना शुरू कर दिया।
“उन्होंने (मुझे प्रशिक्षित करने में) अपनी आत्मा, अपनी आशाएं और विश्वास मुझमें डाल दिए और अपना खून पसीना एवं आंसू बहा दिए। उनके साथ के बिना मेरा मार्ग इतना घटनापूर्ण और उज्ज्वल नहीं होता, जिसके लिए मैं बेहद आभारी हूं।”
एक विकल्प को चुनना
फ्रेमानोव को प्रतियोगिता से बहुत प्यार हो गया और जल्द ही उन्हें भारी सफलता मिली।
पहले ये क्षेत्रीय स्तर पर था और फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर। कैडेट कोर समाप्त होने पर इस बात ने उन्हें अपनी ऊर्जा मार्शल आर्ट्स पर केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने आगे कहा:
“कैडेट से स्नातक होने के बाद, मैंने कई अलग-अलग एमेच्योर वर्ल्ड टाइटल्स जीते। मैं किकबॉक्सिंग में TATNEFT Cup के वर्ल्ड चैंपियन हूं, यूनिवर्सल फाइटिंग, किकबॉक्सिंग, मॉय थाई, सवात में मेरे पास कई वर्ल्ड टाइटल्स और पुरस्कार हैं। साथ ही, मैं GAMMA एमेच्योर वर्ल्ड चैंपियन भी हूं।
“हाई स्कूल के बाद मुझे एक पेशा मिल गया। मैं एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूं। लेकिन मुझे हमेशा से पता था कि मैं खेल को पेशेवर रूप से आगे बढ़ाना चाहता हूं।
“मुझे एक विकल्प को चुनना था और मुझे इस बात का ज़रा भी अफ़सोस नहीं है कि मैंने एक प्रोफेशनल एथलीट बनने का रास्ता चुना, जिसका मैं आज 10 वर्षों से अधिक समय से अनुसरण कर रहा हूं।“
MMA के शिखर तक पहुंचना
वर्ल्ड चैंपियनशिप गोल्ड के अपने सपने को पूरा करने के लिए प्रोफेशनल बनने के बाद से ही फ्रेमानोव ने शानदार विकास जारी रखा है।
2022 में अपने प्रमोशनल डेब्यू में पूर्व 2-डिविजन ONE वर्ल्ड चैंपियन मार्टिन गुयेन के खिलाफ मुकाबला करने का मौका मिलने से पहले उन्होंने रीजनल सर्किट में अपने विरोधियों को ढेर करना शुरू कर दिया।
ये मौका उन्हें केवल इसलिए मिला क्योंकि रूसी एथलीट ने अपना सब कुछ इस पर लगा दिया और अपने बचे हुए पैसे से फुल टाइम ट्रेनिंग के लिए थाईलैंड चले गए थे।
सौभाग्य से, उन्हें इसका फल सही समय पर मिला और इसने उनका जीवन बदल दिया:
“मैंने थाइलैंड जाने का निर्णय इसलिए लिया ताकि मैं एक (प्रमुख प्रोमोशन) को संपर्क कर उनके साथ एक कॉन्ट्रैक्ट साइन कर सकूं। मुझे लगा कि मैं ये कर सकता हूं और भाग्य ने मेरा साथ दिया और ऐसा ही हुआ। घर पर ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं निष्क्रिय हो रहा हूं इसलिए मेरे पास जो कुछ भी था, मैंने उसे लिया और इस खेल के माध्यम से खुद को साबित करने निकल पड़ा।
“सबसे कठिन बात थी जोखिम लेना, अपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलना और अपने लक्ष्यों और सपनों के पीछे जाना। मेरे पास केवल कुछ महीनों के लिए ही पर्याप्त पैसा था इसलिए मेरे पास समय की कमी थी।
“अच्छी बात ये है कि मेरे जोखिमों का फल मिला और नतीजे ये खुद बयां कर रहे हैं। मैंने वो हासिल किया जो मैं चाहता था और अब मैं पेशेवर तौर पर वही कर रहा हूं जो मुझे पसंद है।”