अपने सपनों को पूरा करने के लिए पूजा तोमर को करने पड़े हैं कई सारे त्याग
पूजा “द साइक्लोन” तोमर का एक बहुत बड़ा लक्ष्य है।
26 वर्षीय एथलीट की ये कामना है कि वो मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स को भारत में नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकें। शुक्रवार, 10 जनवरी को ONE: A NEW TOMORROW में वो 2-स्पोर्ट ONE वर्ल्ड चैंपियन स्टैम्प फेयरटेक्स पर जीत हासिल ऐसा कर सकती हैं।
पूजा की ये इच्छा उनके दिल के बहुत करीब है। जैसे-जैसे भारत में मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स लोकप्रिय होगा, वैसे ही लोग इसकी ट्रेनिंग के प्रति दिलचस्पी दिखाने लगेंगे।
यदि ऐसा होता है तो ये भारतीय स्टार के लिए किसी सपने के पूरे होने से कम नहीं होगा। वो किशोरावस्था से ही मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग के कारण ज्यादातर समय अपने घरवालों से दूर रही हैं।
तोमर उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर बुढ़ाना में पली-बड़ी हैं और बचपन से ही मार्शल आर्ट्स के प्रति उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी थी।
उनके शहर में ट्रेनिंग के लिए संसाधन कुछ खास अच्छे नहीं थे और वहाँ उन्हें आगे बढ़ने के भी शायद ही कभी मौके मिल पाते।
पूजा ने कहा, “मैं बचपन में काफी एक्टिव थी और खेती में अपनी माँ की मदद भी करती थी। जब भी मुझे खाली समय मिलता था तो मुझे खेलना काफी पसंद था। वुशु और बॉक्सिंग देखती थी और एथलीट्स की तरह करने की कोशिश करती थी।”
“मेरे घर के सामने कुछ लोग प्रैक्टिस किया करते थे और घंटों तक मैं वहाँ खड़ी रहकर उन्हें देखा करती थी।”
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जो भी उन्हें देखने को मिलता था, वो उसकी नकल करने की कोशिश करती। उनके शहर में जितने भी संसाधन थे, उनसे सीखने की कोशिश करती थीं। 12 साल की उम्र तक पूजा को अंदाजा हो चुका था कि वहां अब वो अब ज्यादा नहीं सीख पाएंगी और आगे बढ़ने के लिए उन्हें बड़े शहर में जाना होगा जिससे उन्हें ज्यादा मौके मिल सकें।
उन्होंने बताया, “बचपन में अपने स्कूल में मैंने कराटे सीखा है लेकिन मुझे एहसास हुआ कि उसमें हम हार्ड पंच नहीं लगा सकते।”
“मुझे पता था कि मैं उससे बेहतर कर सकती थी इसलिए मैंने अपनी माँ से कहा कि मुझे अच्छा एथलीट बनने के लिए दूसरी जगह शिफ्ट होना है। मैं कड़ी मेहनत करूंगी इसलिए प्लीज़ मुझे जाने दें।”
“12 साल की उम्र में मैंने घर छोड़ दिया था और बेहतर एथलीट बनने की तलाश करते-करते मेरठ जा पहुंची। मेरी माँ और बहनों ने मेरे इस फैसले का समर्थन किया।”
बुढ़ाना से मेरठ ही सबसे पास था जो कि करीब 45 किमी दूर था। वहाँ मार्शल आर्ट्स सीखने के लिए अच्छे साधन थे। 12 साल की उम्र में वहां जाना पूजा के लिए बहुत बड़ा कदम था।
उन्होंने आगे कहा, “मेरठ स्टेडियम में ट्रेनिंग अच्छी थी और लोग कड़ी मेहनत कर रहे थे इसलिए मैंने वुशु में अपना नाम दर्ज करवाया।”
“जब मैं मेरठ पहुंची थी तो अपनी जिंदगी को लेकर मेरे मन में कई सवाल थे और मैं तैयार नहीं थी। लेकिन मैंने अपने घर की वित्तीय हालत के बारे में सोचा, अपनी ट्रेनिंग पर ध्यान केंद्रित किया और आगे बढ़ने का प्रयास करती रही।”
अच्छे मार्गदर्शन, लगातार सीखने की चाह और कड़ी मेहनत से पूजा बहुत जल्दी सीख पा रही थीं। जल्द ही उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर वुशु मुकाबले लड़ने का मौका मिला और उनका सपना लगातार बड़ा होता गया।
“द साइक्लोन” को लगा कि वो अपनी ताकत पर ज्यादा निर्भर कर रही हैं और अगर टॉप स्तर का एथलीट बनना है तो उन्हें स्किल्स में सुधार की जरूरत है।
उन्होंने बताया, “जब जूनियर और सब-जूनियर लेवल पर मैंने वुशु मुकाबले लड़े तो उनमें तकनीक की कमी थी। मेरे पास केवल ताकत थी और जीतने के लिए मैं उसी का इस्तेमाल कर रही थी।”
“सब-जूनियर नेशनल लेवल पर 12 साल की उम्र में मैंने अपना पहला मेडल जीता। मेरी बहन ने इंटरनेट पर सर्च करने की कोशिश की कि अगर कोई नेशनल मेडलिस्ट है, तो वो भोपाल में जाकर रह सकता है और खान-पान, रहने के लिए सरकार पैसे अदा करेगी।
“उसके बाद मेरी बहन और मामा के प्रयासों की बदौलत भोपाल गई और स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) जॉइन किया।”
तोमर के इस फैसले का ज्यादा लोगों ने समर्थन नहीं किया था लेकिन ये सौभाग्य की बात रही कि उनकी माँ शुरुआत से ही साथ देती आ रही थीं। उन्होंने अपनी बेटी से कहा कि वो अपने सपने की ओर आगे बढ़ती रहें, लोग तो ऐसी बातें करेंगे ही।
भारतीय मार्शल आर्टिस्ट ने आगे कहा, “मुझे आज भी याद है कि जिस दिन मैं निकली तो हमारे रिश्तेदार घर आकर कह रहे थे कि मैं ओलंपिक्स तक नहीं पहुंच पाउंगी इसलिए मेरा घर पर रहना ही बेहतर होता।”
“मेरी माँ उनसे लगातार लड़ती रहीं और रोई भीं। उन्होंने मुझसे कहा कि तुम जाने की तैयारी करो, इन सबको मैं संभाल लूंगी।”
ये उनकी माँ का ही साथ और विश्वास था, जिससे वो आगे बढ़ती रहीं और अपने शहर से 800 किमी दूर भोपाल में जाकर ट्रेनिंग ली थी।
उन्होंने आगे कहा, “शुरुआत में मुझे काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा लेकिन दृढ़ निश्चय ही मुझे आगे ले जा सकता था। मेरी माँ ने मुझे यहाँ भेजा था इसलिए हार ना मानते हुए मुझे उनके लिए कुछ ना कुछ तो करना है।”
“हर कोई सुबह की और शाम की ट्रेनिंग के बाद अपने कमरे में चले जाते थे लेकिन मुझपर नींद कभी हावी नहीं हुई और शाम को मैं दौड़ लगाने जाती थी। मुझे लगता था कि मेरे पास बहुत कम समय है और मुझे इसी समय में कुछ करना है।”
इसी कड़ी मेहनत से उन्हें वुशु में सफलता मिली और नेशनल लेवल पर कई मेडल जीते। इसके अलावा वो वुशु वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुकी हैं।
यहीं से उन्हें मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स में जाने का मौका भी मिला, ऐसा करियर जिसका वो बचपन में सपना देखा करती थीं।
तोमर अब वैश्विक स्तर की एथलीट हैं और एरीना में मौजूद हजारों दर्शकों के सामने मुकाबला करती हैं। उन्हें बहुत छोटी सी उम्र में अपना परिवार और घर छोड़ना पड़ा था लेकिन उनका वो फैसला आज सही साबित हुआ है।
थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक के इम्पैक्ट एरीना में जीत उनके करियर को रफ़्तार और लोकप्रियता भी दिला सकती है। ये जीत उनकी माँ द्वारा किए गए त्याग और समर्थन के लिए किसी तोहफे से कम नहीं होगी।
“मेरी माँ ने मुझे कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित किया है और अब मेरा पूरा परिवार मेरे साथ खड़ा है और कड़ी मेहनत के लिए प्रेरित कर रहा है।”
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