कौन सी बातें लेथवेई को दूसरे मार्शल आर्ट्स से अलग बनाती हैं?
लेथवेई को बर्मीज़ बेयरनकल बॉक्सिंग के तौर पर भी जाना जाता है। देखने वालों पर ये मार्शल आर्ट्स अपना गहरा प्रभाव डालता है।
दरअसल, ये मार्शल आर्ट्स देखने में बहुत दिलचस्प है और एशियाई तौर तरीकों से भरा हुआ है। ONE Championship में इस मार्शल आर्ट्स को अपना सही ठिकाना मिल गया है।
कई गोल्ड बेल्ट चैंपियन जैसे मिटे याइन, ये थॉ ने और था प्या न्यो ने मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स प्रतियोगिता के जरिए अपने वर्ल्ड क्लास हुनर में इसका इस्तेमाल किया और सफलता हासिल की। ये ट्रेंड वो भविष्य में भी जारी रख सकते हैं।
आइए जानते हैं कि “द स्पोर्ट ऑफ वॉरियर्स” को किकबॉक्सिंग और मॉय थाई जैसी मार्शल आर्ट्स से कौन सी चीजें अलग बनाती हैं।
व्यापक और लंबा इतिहास
लेथवेई की जड़ें इतिहास में उस समय से जुड़ी हैं, जब इस मार्शल आर्ट्स का इस्तेमाल म्यांमार की सीमाओं को सुरक्षित रखने और उसका बचाव करने के लिए किया जाता था।
पारंपरिक लेथवेई बाउट में कोई स्कोरिंग सिस्टम नहीं होता है। इसमें मैच तब तक चलता है, जब तक कोई एथलीट सरेंडर न कर दे या कोई नॉकआउट व घायल न हो जाए।
लेथवेई सीखने के शुरुआती दिनों में फुर्ती और तकनीक बहुत अहम मानी जाती हैं। इसमें सख्ती और बचाव जरूरी होते हैं।
कई साल तक उतार-चढ़ाव से गुजरने वाले इस खेल को एथलीटों और जुनूनी दर्शकों ने परंपरा के तौर पर बचाए रखा।
फो “बुशीदो” थव इस मार्शल आर्ट्स के माहिर खिलाड़ियों में से एक हैं। यानगांव के रहने वाले इस एथलीट ने अपनी मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स में इसे शामिल किया है। यही कारण है कि उनका ONE Championship में प्रोफेशनल रिकॉर्ड अब 8-2 हो गया है।
लेथवेई के नियम
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पारंपरिक लेथवेई बाउट्स में कोई भी एथलीट केवल नॉकआउट के जरिए ही जीत सकता है, वरना मैच ड्रॉ माना जाएगा। इस मैच में नॉकआउट होने के बाद भी वो एथलीट स्पेशल दो मिनट का रिकवरी टाइम मांग सकता है और फिर से जीत के लिए कोशिश कर सकता है।
लेकिन अब जो नए नियम और कानून बनाए गए हैं, उनमें एथलीट के बचाव के साथ लेथवेई को भरपूर मनोरंजन से भर दिया गया है।
लेथवेई सीखने वाले माउथगार्ड और ग्रोइन प्रोटेक्टर्स जरूर पहनते हैं। वहीं, प्रतियोगिता के दौरान ग्लव्स पहनने की जगह उनके हाथों पर केवल टेप और गेज लगा रहता है।
एथलीट इन मैचों में हेडबट्स, एल्बो, नी, किक, क्लिंचिंग, स्वीप और थ्रो का इस्तेमाल करके मैच जीत सकते हैं। ये मैच तीन से पांच राउंड तक चल सकते हैं।
अगर नॉकआउट से मैच नहीं खत्म होता है तो फिर जज विजेता का ऐलान करते हैं।
लेथवेई हेडबट
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मॉय थाई को “आठ अंगों की कला” कहा जाता है, जबकि लेथवेई को “नौ अंगों की कला” के रूप में जाना जाता है। इसमें एक और जरूरी अटैक को शामिल किया गया है, जिसे हेडबट या hkaung tike कहते हैं।
लेथवेई एथलीट तीन तरह के हेडबट का इस्तेमाल करते हैं। जब हेडबट क्लिंच से मारा जाता है, तब इसे choke hkaung tike कहते हैं। रशिंग हेडबट को hkaung sount tike नाम से जाना जाता है। वहीं, फ्लांइग हेडबट को hkun hkaung कहते हैं।
अब क्योंकि एथलीट खुद का हमेशा बचाव करते हैं इसलिए हेडबट लगाने के लिए उन्हें कई सारी तकनीकें और दांव पेच का इस्तेमाल करना पड़ता है।
लेथवेई सीखने वाले ये जरूर ध्यान रखते हैं कि वे अपने सिर के मजबूत हिस्से से वार करें, ताकि खुद को बचाते हुए विरोधी को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकें।
हेडबट लगाने पर पलक झपकते ही मैच का रुख बदला जा सकता है। यही कारण है कि लेथवेई एथलीटों को बड़े सम्मान और विरोधी में डर पैदा करने वाला समझा जाता है।
हेडबट मारने की अनुमति लेथवई में दी गई है, जबकि अन्य मार्शल आर्ट्स मैचों में इसे मारने पर पाबंदी है। इनमें मिक्स्ड मार्शल आर्ट्स, किकबॉक्सिंग और मॉय थाई शामिल हैं।
लेखा मौन और लेथवेई ये
लेथवेई एथलीटों को सर्कल में उनकी आक्रामकता और धैर्य के लिए जाना जाता है, जबकि उसके बाहर वो विनम्र स्वभाव के लिए जाने जाते हैं।
लेथवेई में ऐसी परंपराएं भरी हैं, जो अपने विरोधी का सम्मान करती हैं।
इन्हीं में से एक जानी मानी परंपरा लेखा मौन है। एथलीट अपने बाएं हाथ को झुकाकर, दाहिने बगल में रखकर इशारे करते हैं। वे फिर अपने दाहिने हाथ को हिलाते हुए अपनी बाईं बांह से तीन बार ताली बजाते हैं।
लेखा मौन करने की प्रेरणा पक्षी के पंख फड़फड़ाने से ली गई है, जिससे एथलीट अपने विरोधी का सम्मान करता है। ज्यादातर इसे मैच की शुरुआत में किया जाता है लेकिन विरोधी को सम्मान देने के लिए कई बार ये मैच के बीच में की जाती है।
कई बार लेखा मौन के साथ योद्धा का नाच कहे जाने वाले लेथवेई ये को भी साथ में किया जाता है। ये डांस मैच के पहले विरोधी के लिए किया जाता है लेकिन कई बार मैच खत्म होने पर एथलीट इसे जश्न के तौर पर भी करते हैं।
लेखा मौन और लेथवेई ये में थाईलैंड के वाय क्रू और कंबोडिया के कुन क्रे की समानताएं देखने को मिलती हैं। इसके बावजूद ये म्यांमार की खासियत मानी जाती है।
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